गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
लगी आग सीने में मेरे लगी है / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
1 byte removed
,
02:47, 21 सितम्बर 2011
हमारे ही हाथों क्या गंगा बची है
ज़रा
-
सा छुआ था सुलगती
-
सी निकली
वो शबनम से शोला अभी जो बनी है
Purshottam abbi "azer"
134
edits