<Poem>
यह पत्थरों का शहर है
बेजान बुत सा खड़ा, इसके सीने में भरा गुबारों गु़बारों का ज़हर है।
यह पत्थरों का शहर है।
यहाँ पलती है ज़िन्दगी नासूर सी, यहाँ जलती है ज़िन्दगी काफ़ूर सी
यहाँ बहकती है ज़िन्दगी सुरूर सी, यहाँ तपती है ज़िन्दगी तंदूर सी
अहसान फ़रामोश इस शहर का,अजीबो ग़रीब ज़नून ज़ुनून है।पत्थरों के सीने में यहाँ हरदम उबलता खून खू़न है।
सूरज के ख़ोफ़ से झुलसता, तपता यह अंगारों का शहर है।
यह पत्थरों का शहर है।
किसी के क़दमों में फ़लकफलक, किसी की क़िस्मत में फ़लक के सितारे हैंकिसी के आशियाने की निगहबान निग़हबान हैं सड़कें, किसी के आशियाने सड़क के किनारे हैं
पशेमाँ तक नहीं, लिए फिरते हैं ज़लज़ले हाथों में।
चमन के फूलों का यायावर घूमना, दुश्वार है बागों बाग़ों में।
यहाँ हर रात, बदलते चाँद पर, बरसता सितारों का क़हर है।
यह पत्थरों का शहर है।
इस शहर के पत्थर भी हैं,जहाँ में मशहूर
कोटा साड़ी का जल्वा है, चर्चा है कचौरी का दूर दूर
किस्में नमकीन की हैं लाजवाब, बाफले-बाटी-कत क़त का है दस्तूर
पत्थरो के शहर में ज़िन्दगी चल रही है बदस्तूर
किस की लगी नज़र कि यह शहर संगदिल हो गया
चंबल नदी का वरदान है यह मुकम्मल मुक़म्मल हो गया
श्रवण्ा भी समझ बैठा था, माता पिता को बोझ, उन किनारों का शहर है
यह पत्थरों का शहर है।
बैठें मिलें यारों की अंजुमन ही सजायें
बंसी न बजायेगा नीरो न फिर रोम जलेगा
घर -घर में दीप जलेंगे गले दुश्मन भी मिलेगाशहर न उजड़ेगा इसमें गर नाखुदाओं नाखु़दाओं का बसर है
फिर न कहेगा कोई यह पत्थरों का शहर है।।
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