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14:02, 23 सितम्बर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
|संग्रह=शेष बची चौथाई रात / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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<poem>
दिल के दरिया में उतरने का मज़ा भी जान ले
तू किसी से प्यार करने का मज़ा भी जान ले
छल-कपट की फेंक दे ढपली भुला स्वारथ का राग
तू ख़ुदा से कुछ तो डरने का मज़ा भी जान ले
हर मज़ा फीका लगेगा इसके आगे देखना
दूसरों की पीर हरने का मज़ा भी जान ले
तूने भी सच की हिमायत ख़ूब की अब ले इनाम
रोज़ जीने और मरने का मज़ा भी जान ले
छुप के बैठा है कहाँ हिम्मत है तो बाहर निकल
दुश्मनी तू हमसे करने का मज़ा भी जान ले
तीसरी मंज़िल पे रहने की बहुत थी ज़िद तेरी
सीढ़ियाँ चढ़ने-उतरने का मज़ा भी जान ले
<poem>