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23:13, 6 अक्टूबर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निशान्त
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>शुरुआती अच्छे दिनों में
जब गर्मी-गर्मी जैसी थी
सर्दी-सर्दी जैसी
और वर्षा-वर्षा जैसी
पहाड़ों पर जमती थ्ीा पूरी बर्फ
नदियों में था पूरा पानी
हमने देखा था एक सपना
प्यासी धरती को
पानी पिलाने का
हमने बांधे बांध
निकाली नहरें
विरान उजाड़ में
पैर पसारने लगी हरियाली
बसने लगी
नई-नई बस्तियाँ
कस्बे-शहर
फैला बणिज-व्यापार
आदम का परिवार
लेकिन यह क्या
हमारा सपना पूरा का पूरा अभी
पूरा भी न हुआ था कि
बदल गया मौसम
न गर्मी सी गर्मी रही
न सर्दी सी सर्दी
न वर्षा सी वर्षा
पहाड़ों पर जमी नहीं बर्फ
तो कहाँ से आता हमारी नहरों में पानी
फसलों के साथ
रहने लगी आदम जात प्यासी
कोढ़ में खाज एक और हुई
मंडराने लगा यु( का खतरा
हमारे सिर </poem>
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