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|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

|संग्रह=सुबह की दस्तक / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

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<poem>
झूठी तारीफ़ों के पुल बाँधा न कर
इश्तहारों की ज़ुबां बोला न कर

रूठना तेरा सुभान अल्ला मगर
छोटी छोटी बात पे रूठा न कर

है बुरा हरदम नसीहत बाँटना
फिर वही ऐसा न कर वैसा न कर

कोई गुस्ताख़ी न कर बैठूँ कभी
मुझको इस अंदाज़ से देखा न कर

बंद भी कर ये सियासी गुफ़्तगू
ख़ुशनुमा माहौल को गंदा न कर

छेड़ दी आते ही फिर जाने की ज़िद
ऐसे आना है तो फिर आया न कर

आज कुछ खोया है कल कुछ पाएगा
हौसला रख यार दिल छोटा न कर
<poem>
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