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शब्द / मधुप मोहता

No change in size, 10:45, 11 अक्टूबर 2011
और बह निकलते हैं, अपने निर्बाध प्रवाह में।
तुम सामने बैठी रहती हो
आंखों में लिए एक प्रष्नप्रश्न, जिज्ञासु ?
वहां से प्रारंभ होती है कविता।
</Poem>
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