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02:37, 19 अक्टूबर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
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<poem>
दिखावा है मुहब्बत का किसी की ऐतबारी क्या
सभी हैं मस्त अपने में जमूरा क्या मदारी क्या
पठनवा ढूंडता फ़िरता लिए वो हाथ में लठवा
तू लम्बी तान के सोया चुका दी है उधारी क्या
टिकटवा रेल का लेवे चढ़े है तू जहजवा में
कभी बैठा भी बसवा में अकल तेरी है मारी क्या
बने अंजान तुम फ़िरते मगर है पेट में दाड़ी
बनाते किसको उल्लू हो खबर हमको न सारी क्या
पटखनी तुमको देंगे हम गिरोगे मुहँ के बल जाकर
भला जब दावँ सीखे हैं हमन को काम भारी क्या
<poem>