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आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक / ग़ालिब
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06:22, 25 अक्टूबर 2011
गर्मी-ए-बज्म है इक रक्स-ए-शरर<ref>अन्गारों का नृत्य</ref> होने तक!
गम-ए-हस्ती<ref>जीवन का दुख</ref> का "असद"
किससे
कैसे
हो जुज-मर्ग-इलाज
शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक!
</poem>
{{KKMeaning}}
Aansu
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