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11:51, 25 अक्टूबर 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
|संग्रह=सुबह की दस्तक / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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<poem>
कहीं लगता नहीं हर शै से अब तो मन उचटता है
तुम्हारे बिन तो इक-इक दिन बड़ी मुश्किल से कटता है
मैं तंग आया हूँ इस खिलवाड़ से ऐ मेरे चारागर
ये कैसा रोग है मुझको न बढ़ता है, न घटता है
लगा है झूठ के ग्रन्थों में जाने कौन सा काग़ज़
मैं कोशिश कर रहा हूँ एक भी पन्ना न फटता है
कहा जो आज उसने कल भी कह देगा भरोसा क्या
यहाँ तो आदमी हर पल बयाँ अपने पलटता है
वो पूरी फ़ौज-पलटन आँधियों की लेके आयेगा
किसी दीपक से अँधियारा ‘अकेला’ कब निपटता है
<poem>