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स्कूल की डायरी से / विमलेश त्रिपाठी
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17:07, 4 नवम्बर 2011
{{KKRachna
|रचनाकार=विमलेश त्रिपाठी
|संग्रह=
हम बचे रहेंगे. / विमलेश त्रिपाठी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
तब देर रात गए एक पागल तान
अँधेरे के साँवर
कपोलें
कपोलों
पर फेनिल स्पर्श करती थीं
बसंती झकोरों में मदहोश एक-एक पत्तियाँ
लयबद्ध नाचती थीं
अनिल जनविजय
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