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<poem>
है अन्धेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?
 
कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना था,
एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है?
है अन्धेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?
 
बादलों के अश्रु से धोया गया नभनील नीलम,
एक निर्मल स्रोत से तृष्णा बुझाना कब मना है?
है अन्धेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?
 
क्या घड़ी थी एक भी चिंता नहीं थी पास आई,
पर अथिरता की समय पर मुस्कुराना कब मना है?
है अन्धेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?
 
हाय, वे उन्माद के झोंके कि जिनमें राग जागा,
खोज मन का मीत कोई लौ लगाना कब मना है?
है अन्धेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?
 
क्या हवाएँ थी कि उजड़ा प्यार का वह आशियाना,