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प्राण तुम्हारी पदरज़ पदरज फूलीमुझको कंचन हुई तुम्हारे चरणों की यहधूली!
आई थी तो जाना भी था -
फिर भी आओगी, दुःख किसका?
एक बार जब दृष्टिकरों के पद चिह्नों की रेखा छू ली!
वाक्य अर्थ का हो प्रत्याशी,
गीत शब्द का कब अभिलाषी?
अंतर में पराग -सी छाई है स्मृतियों की आशा धूली!प्राण तुम्हारी पदरज़ पदरज फूली!
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