Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=काज़िम जरवली |संग्रह= }} {{KKCatKataa}} <poem>बा...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=काज़िम जरवली
|संग्रह=
}}
{{KKCatKataa}}



<poem>बात सच्ची हो तो चाहे जिस ज़बा मे बोलिये,
फर्क मतलब पर नहीं पड़ता है ख़ालिक़ कि क़सम ।
"माँ के पैरो मे है जन्नत" क़ौल है मासूम का,
मै मुसल्ले पर भी कह सकता हुं “वन्दे मातरम” ।। --”काज़िम” जरवली
</poem>