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14:06, 8 नवम्बर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=काज़िम जरवली
|संग्रह=
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{{KKCatGhazal}}
<poem>मुफलिसी मे भी यहाँ खुद को संभाले रखना,
जेब खाली हो मगर हाथो को डाले रखना ।
रोज़ ये खाल हथेली से उतर जाती है,
इतना आसान नहीं मुह मे निवाले रखना ।
गाँव पूछेगा के शहर से किया लाये हो,
मेरे माबूद सलामत मेरे छाले रखना ।
ज़िन्दगी तूने अजब काम लिया है मुझ्से,
ज़र्द पत्तो को हवाओ मे संभाले रखना ।
जब भी सच बात ज़बां पर कभी लाना ”काज़िम”
ज़ेहन मे अपने किताबो के हवाले रखना ।। --”काज़िम” जरवली
</poem>