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14:16, 8 नवम्बर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=काज़िम जरवली
|संग्रह=
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{{KKCatGhazal}}
<poem>सराबो से नवाज़ा जा रहा हूँ,
आमीर-ए-दश्त बनता जा रहा हूँ ।
मैं खुशबु हु यह दुनिया जानती है,
मगर फिर भी छुपाया जा रहा हुं ।
ज़माना मुझ्को सम्झे या न सम्झे,
मै एक दिन हूँ, जो गुज़रा जा रहा हूँ ।
मेरे बाहर फ़सीले आहनी है,
मगर अन्दर से टुटा जा रहा हूँ ।
मेरे दरिया, हमेशा याद रखना,
तेरे साहिल से पियासा जा रहा हूँ ।
तुम अब थकती हुई नज़रे झुका लो,
बुलंदी से मै उतरा जा रहा हूँ ।। --”काज़िम” जरवली
</poem>