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|रचनाकार=काज़िम जरवली
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<poem>मै लाख सच था, मगर सच पा ध्यान देता कौन,
बिकी हुई थीं ज़बाने बयान देता कौन ।

जब आँधियों ने किया था हमारे घर का सफ़र,
सभी थे महवे तमाशा अज़ान देता कौन ।

न रंगता अपना ही चेहरा तो और क्या करता,
हमारे खून को "काज़िम" अमान देता कौन । ---काज़िम जरवली
</poem>