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14:28, 8 नवम्बर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=काज़िम जरवली
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{{KKCatGhazal}}
<poem>मै लाख सच था, मगर सच पा ध्यान देता कौन,
बिकी हुई थीं ज़बाने बयान देता कौन ।
जब आँधियों ने किया था हमारे घर का सफ़र,
सभी थे महवे तमाशा अज़ान देता कौन ।
न रंगता अपना ही चेहरा तो और क्या करता,
हमारे खून को "काज़िम" अमान देता कौन । ---काज़िम जरवली
</poem>