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07:39, 9 नवम्बर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अनीता अग्रवाल
|संग्रह=
}}
<poem>
बहुत दिनों बाद मैं बाजार निकली
तो लगा
कि चीजें मेरे इंतजार में हैं
इंतजार में है
एक पुरी दुनिया
खासर मेरे लिए
खुलने को बेचैन
यह क्या हुआ
कि मैं बाजार में पहुंची
चीजें सब वहीं थाी
सलीके से लगी हुई
मैं ही नहीं रह गई थी अपनी जगह
</poem>