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ऋतु वर्णन / सेनापति
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12:45, 10 नवम्बर 2011
रजनी की झाई, वासर मे झलकती है ।
चाहत चकोर,सुर ओर द्रग
च्होर
छोर
करि, चकवा की
चहाती
छाती
तजि धीर धसकति है।
चन्द के भरम होत मोद हे कुमोदिनी को,
ससि संक पंकजिनी फुलि न सकति है।
</poem>
Siddhartha
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