गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
हर ख़ुशी ग़म में बदलती है कहो कैसे हँसूं /वीरेन्द्र खरे अकेला
No change in size
,
10:38, 12 नवम्बर 2011
ग़ैर के घर में टहलती है कहो कैसे हँसूं
शान से महलों में पलती है कहो कैसे हँसूं
करके ईमानों को बेघर बेईमानी आजकल
शान से महलों में पलती है कहो कैसे हँसूं
ज़िन्दगानी हाथ मलती है कहो कैसे हँसूं
Tanvir Qazee
338
edits