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12:18, 16 नवम्बर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार='अना' क़ासमी
|संग्रह=हवाओं के साज़ पर/'अना' क़ासमी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
ख़बर है दोनों को दोनों से दिल लगाऊँ मैं,
किसे फ़रेब दूँ, किस से फ़रेब खाऊँ मैं ।
नहीं है छत न सही आसमाँ तो अपना है,
कहो तो चाँद के पहलू में लेट जाऊँ मैं ।
यही वो शय है कहीं भी किसी भी काम में लो,
उजाला कम हो तो बोलो कि दिल जलाऊँ मैं ।
नहीं नहीं ये तिरी ज़िद नहीं है चलने की,
अभी-अभी तो वो सोया है फिर जगाऊँ मैं ।
बिछड़ के उससे दुआ कर रहा हूँ अय मौला,
कभी किसी की मुहब्बत न आज़माऊँ मैं ।
हर एक लम्हा नयापन हमारी फ़ितरत है,
जो तुम कहो तो पुरानी ग़ज़ल सुनाऊँ मैं ।
<poem>