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13:54, 26 नवम्बर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार='अना' क़ासमी
|संग्रह=
}}
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<poem>
दिल की हर धड़कन है बत्तिस मील में ।
वो ज़िले में और हम तहसील में ।
उसकी आराइश<ref>शृंगार</ref> की क़ीमत कैसे दूँ,
दिल को तोला नाक की इक कील में ।
कुछ रहीने मय<ref>शराब की अहसानमंद</ref> नहीं मस्ते ख़राम,
सब नशा है सैण्डिल की हील में ।
यक-ब-यक लहरों में दम-सी आ गई,
लड़कियों ने पाँव डाले झील में ।
उम्र अदाकारी में सारी कट गई,
इक ज़रा से झूठ की तावील<ref>बात घुमाना</ref> में ।
आप कहकर देखिएगा तो हुज़ूर,
सर है ह़ाज़िर हुक्म की तामील में ।
सैकड़ों ग़ज़लें मुकम्मल हो गईं,
इक अधूरे शेर की तकमील<ref>पूरा करने की कोशिश</ref> में ।
</poem>
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