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परांगमुखी प्रिया से / दुष्यंत कुमार
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05:24, 30 नवम्बर 2011
कोरे कागज़ों को रँगने बैठा हूँ
असत्य क्यों कहूँगा
तुमने कुछ जादू
कार
कर
दिया।
खुद से लड़ते
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