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पारपत्र.. / सुकान्त भट्टाचार्य

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नन्हा, निस्सहाय वह
फ़िर फिर भी मुट्ठियाँ भिंची हुई
लहराती-फ़हराती
न जाने किस अबूझ अंगीकार में ।
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