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पारपत्र.. / सुकान्त भट्टाचार्य
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11:34, 3 दिसम्बर 2011
नन्हा, निस्सहाय वह
फ़िर
फिर
भी मुट्ठियाँ भिंची हुई
लहराती-फ़हराती
न जाने किस अबूझ अंगीकार में ।
अनिल जनविजय
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