कविता मानवीय अनुभूतियों को शब्दों के द्वारा प्रगट करने का सबसे प्रभावपूर्ण माध्यम है. ग़ज़ल की विधा, जो एक लम्बे अरसे तक श्रंगार और करुणा रस तक ही सीमित थी और जिसे एक भाषा विशेष तक ही सीमित रखा गया था, उसे उर्दु भाषा के पाठकों और श्रोताओं से आगे बढ़ा कर हिंदी भाषा से जोड़ने का श्रेयकर कार्य मुख्यत: दुष्यंत जी के बाद ही शुरू हुआ। उन्होंने और उनके बाद के जिन कवियों और शायरों ने ग़ज़ल की देह पर जनसामान्य के जीवन की कठिनाइयों, दुविधाओं और चुनोतियों के उबटन लगाये , उसको चीखती अव्यवस्थाओं और दम तोडती नैतिकताओं के बीच पोषित किया, उनमे कुमार अनिल का नाम मुख्य रूप से लिया जा सकता है। उन्होंने ही कहा है :-
'''" आँधियों में जला रहा है चराग, ये अनिल कितना बावला है दोस्त ."'''