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चितवन का जादू / रामनरेश त्रिपाठी
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12:39, 7 दिसम्बर 2011
रुचि रह जाती नहीं खान में न पान में,
::न गान में न मान में न ध्यान में न धन में।
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चित्र में खचित-सा अचेत रहता है नित,
::जाता है चिपक जब चित चितवन में॥
</poem>
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