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22:21, 12 दिसम्बर 2011 आदमी बुलबुला है पानी का<br />
और पानी की बहती सतह पर टूटता भी है, डूबता भी है,<br />
फिर उभरता है, फिर से बहता है,<br />
न समंदर निगला सका इसको, न तवारीख़ तोड़ पाई है,<br />
वक्त की मौज पर सदा बहता आदमी बुलबुला है पानी का।<br />