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22:24, 12 दिसम्बर 2011 आज फिर चाँद की पेशानी से उठता है धुआँ<br />
आज फिर महकी हुई रात में जलना होगा<br />
आज फिर सीने में उलझी हुई वज़नी साँसें<br />
फट के बस टूट ही जाएँगी, बिखर जाएँगी<br />
आज फिर जागते गुज़रेगी तेरे ख्वाब में रात<br />
आज फिर चाँद की पेशानी से उठता धुआँ<br />