Changes

अंतिम आलोक / अज्ञेय

6 bytes added, 09:54, 17 दिसम्बर 2011
देखी उस अरुण किरण ने
कुल पर्वत-माला श्यामलश्यामल—
बस एक शृंग पर हिम का
था कम्पित कंचन झलमल ।
प्राणों में हाय पुरानी
क्यों कसक जग उठी सहसा ?
वेदना-व्योम से मानोमानो—
खोया-सा स्मृति-घन बरसा !
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,636
edits