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पढ़िए गीता / रघुवीर सहाय

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|रचनाकार =रघुवीर सहाय|संग्रह=सीढ़ि‍यों पर धूप में / रघुवीर सहाय
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पढ़िए गीता
फिर इन सब में लगा पलीता
किसी मूर्ख की हो परिणीता
निज घर-बार बसाइये।बसाइए ।
होंय कँटीली
लकड़ी सीली, तबियत ढीली
घर की सबसे बड़ी पतीली
भरकर भात पसाइये। पसाइए ।
</poem>
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