गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
सोचा था / रमेश रंजक
4 bytes removed
,
07:15, 19 दिसम्बर 2011
जाने किन सिरफिरे अभावों में
रद्दी के भाव बिक गए हैं हम
बेमौसम ।
आए थे ताज़े अख़बार-से
सवेरा था
धूप में नहाए तो बुढ़ियाये
निज-निर्मित कुण्ठ के घेरों से
सोचा था तैर कर समुन्दर की
लहरों पर नाम लिख गए हैं हम
कितना भ्रम ।
</poem>
अनिल जनविजय
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,865
edits