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{{KKRachna
|रचनाकार = साहिर लुधियानवी|संग्रह=
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ना मुंह छिपा {{KKCatGhazal}}<poem>न मुँह छुपा के जियो और ना न सर झुका के जियो गमों ग़मों का दौर भी आए आये तो मुस्कुरा के जियो । घटा में छुप न मुँह छुपा के सितारे फना नहीं होते अंधेरी रात के दिल में दीये जला जियो और न सर झुका के जियो ।
घटा में छुपके सितारे फ़ना नहीं होते
अँधेरी रात में दिये जला के चलो
न मुँह छुपा के जियो और न सर झुका के जियो
ना जाने कौन-सा पल मौत की अमानत हो
हर एक पल की खुशी को गले लगा के जियो
न मुँह छुपा के जियो और न सर झुका के जियो
हर एक पल की खुशी को गले लगा के जियो । ये जिंदगी ज़िंदगी किसी मंजिल मंज़िल पे रूक रुक नहीं सकती हर इक मुकाम से आगे कदम मक़ाम पे क़दम बढ़ा के चलोन मुँह छुपा के जियो ।और न सर झुका के जियो</poem>