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तन की दौलत ढलती छाया मन का धन अनमोल
तन के कारण मन के धन को मत माटि मेइन माटी में रौंद
मन की क़दर भुलानेवाला वीराँ जनम गवाये
तोरा मन दर्पण कहलाये
तोरा मन दर्पण कहलाये
</poem>
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