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अस्वीकरण
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दुःख / रमेश रंजक
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,
17:03, 26 दिसम्बर 2011
<poem>
जिस दिन से आए
उस दिन से
घर में यहीं पड़े हैं
दुख कितने लँगड़े हैं ?
अनिल जनविजय
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