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उनके वादे कल के हैं / बालस्वरूप राही
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09:19, 27 दिसम्बर 2011
जो आधे में छूटी हम
मिसरे उसी
गजल
ग़ज़ल
के हैं ।
बिछे पाँव में क़िस्मत है
अनिल जनविजय
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