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अक्कड़ मक्कड़ ,धूल में धक्कड़,दोनों मूरख,दोनों अक्खड़,हाट से लौटे,ठाठ से लौटे,
एक साथ एक बाट से लौटे.
इसने उसकी गर्दन भींची,
उसने इसकी दाढी खींची.
अब वह जीता, अब यह जीता;
दोनों का बढ चला फ़जीता;
बोला ‘ठहरो’ गला फाड़ कर.
अक्कड़ मक्कड़ ,धूल में धक्कड़,दोनों मूरख,दोनों अक्खड़,
गर्जन गूंजी, रुकना पड़ा,
सही बात पर झुकना पड़ा !
उसने कहा सधी वाणी में,
डूबो चुल्लू भर पानी में;
ताकत लड़ने में मत खोऒखोओचलो भाई चारे को बोऒबोओ!
खाली सब मैदान पड़ा है,
आफ़त का शैतान खड़ा है,
ताकत ऐसे ही मत खोऒखोओ,चलो भाई चारे को बोऒबोओ. सुनी मूर्खों ने जब यह वाणीदोनों जैसे पानी-पानीलड़ना छोड़ा अलग हट गएलोग शर्म से गले छट गए सबकों नाहक लड़ना अखराताकत भूल गई तब नखरागले मिले तब अक्कड़-बक्कड़खत्म हो गया तब धूल में धक्कड़
अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़
दोनों मूरख, दोनों अक्खड़
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