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भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा (कविता) / कुमार विश्वास
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13:55, 30 दिसम्बर 2011
कभी कोई जो खुलकर हंस लिया दो पल तो हंगामा
कोई ख़्वाबों में
आकार
आकर
बस लिया दो पल तो हंगामा
मैं उससे दूर था तो शोर था साजिश है , साजिश है
उसे बाहों में खुलकर कस लिया दो पल तो हंगामा
शरद
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