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19:45, 30 दिसम्बर 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मख़्मूर सईदी
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<poem>
ज़रा ठहरो ! किधर हम जा रहे हैं
उधर उस चारदीवारी के पीछे
वो बूढ़ा गोरकन चिल्ला रहा है :
‘इधर आओ ! क़दम जल्दी बढ़ाओ
यहाँ इस चारदीवारी के अंदर
जनम दिन से तुम्हारी मुंतज़िर हैं
वो क़ब्रें, जिन की पेशानी प’ अब तक
किसी के नाम का कत्बा नहीं है
</poem>