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19:47, 30 दिसम्बर 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मख़्मूर सईदी
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<poem>
तेरा हँसता हुआ चेहरा
ग़ज़ल गाती हुई आँखें
मैं इस चेहरे को जब हाथों में लेकर चूम लेता हूँ
तो लगता है
उतर आई कुँआरी रोशनी सुब्ह-ए-अज़ल की
मेरे सीने में
मैं इन आँखों में आँखें डाल कर जब देख लेता हूँ
तो यूँ महसूस होता है
अबद की वादियों तक इक अछूता कैफ़ छाया है
जिसे छूना, जिसे अपना बना लेना
(हज़ारों दुश्मनों के दर्मियाँ)
मेरा, फ़क़त मेरा ही हिस्सा है
तेरा हँसता हुआ चेहरा
ग़ज़ल गाती हुई आँखें
मेरा सरमाया-ए-हस्ती, मेरे पिंदार की मस्ती
मगर मैं अपने इस पिंदार से ख़ुद हार जाता हूँ
मुख़ालिफ़ भीड़ में ख़ुद को तहीमाया सा पाता हूँ
जब इस हँसते हुए चेहरे पे कुछ अंजान से साये
(मैं जिनसे नाशनासा हूँ)
घने, गहरे, धुंधलकों की नक़ाबें डाल देते हैं
ग़ज़ल गाती हुई आँखों में कुछ बेनाम से मौसम
(जो मुझसे दूर गुज़रे हैं)
अचानक लौट आते हैं
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