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पैंसिल / ज्यून तकामी

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|संग्रह=पहाड़ पर चढ़ना चाहते हैं सब / ज्यून तकामी
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<poem>
बहुत उदास है पैंसिल...
 
दूर नहीं रही मुझ से कभी जो
 
मेरी सब कविताओं की माँ है वो
 
अब घिस गई...
 पैंसिल ! ओ पैंसिल ! 
मेरे लिए घिस दिया तूने अपना शरीर
 
सारा जीवन चाकू की झेली तूने पीर
 
मरने से पहले भी हुई न अधीर
 
आत्मत्यागी है तू जैसे कोई फकीर
 
ओ पैंसिल मेरी !
 
मन में है मेरे विचार कुछ ऎसा
कि बन जाऊँ मैं बिल्कुल तुझ जैसा ।
कि बन जाऊँ मैं बिल्कुल तुझ जैसा ।'''रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''</poem>
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