Changes

शिमला का तापमान / अजेय

10,931 bytes added, 04:03, 10 जनवरी 2012
'<poem>( सामान्य से दस डिग्री उपर) '''+10<sup></sup>c''' भीड़ कभी छितरा...' के साथ नया पन्ना बनाया
<poem>( सामान्य से दस डिग्री उपर)

'''+10<sup></sup>c'''
भीड़ कभी छितराती है
कभी इकट्ठी हो जाती है
तिकोने मैदान पर विभिन्न रंगों के चित्र उभरते हैं
एक दूसरे में घुलते हैं
स्पष्ट होते हैं
बिखर कर बदल जाते हैं
कभी नीली जीन्स की नदी सी एक
दूर नगर निगम के दफ्तर तक चली जाती है
पतली और पतली होती
जल पक्षियों से, डूबते, उतराते हैं
उस पर रंग बिरंगी टी-शर्ट्स और टोपियां
धूप सीधी सर पर है एकदम कड़़क
और तापमान बढ़ा हुआ

'''+20c'''
बच्चे बड़े बड़े गुब्बारे ओढ़ रहे हैं
गोल लम्बूतरे
बड़ी-बड़ी गुलाबी कैंडीज़ में से झाँकता
एक मरियल काला बच्चा
मेरे पास आकर रोता है -
‘अंकल ले लो न, कोई भी नहीं ले रहा’’
उसकी आंखें प्रोफेशनल हैं
फिर भी भीतर कुछ काँप सा जाता है
तापमान पहले से बढ़ गया है

'''+30c'''
प्लास्टिक का हेलीकॅाप्टर
रह रह कर मेरे पास तक उड़ा चला आता है
लौट कर लड़खड़ाता लेन्ड करता है
रेलिंग पर बैठा बड़ा सा बन्दर
दो लड़कियों की चुन्नी पकड़ता, मुंह बनाता, डराता है

लड़कियाँ
एक सुन्दर, गोरी, लाल-लाल गालों वाली
दूसरी साधारण, सांवली
प्रतिवाद नहीं करतीं
शर्म से केवल मुह छिपातीं, मुस्करातीं हैं
तापमान बढ़ता ही जा रहा है

'''+40c'''
इक्के दुक्के घोड़े वाले ठक-ठक किनारे किनारे दौड़ रहे हैं
घोड़े वालों की चप्पलों की चट-चट
घोड़े की टापों में घुल मिल रही है
दोनो हाँफ रहें हैं
गर्म हवा की किरचियाँ हैं
धूप की झमक है
दोनों की चुंधियाई आँखों में आँसू हैं
गाढ़े सनग्लास पहने सैलानी स्वर्ग में उड़ रहा है
बड़े से छतनार दरख्त के नीचे
आई जी एम सी में इलाज करवाने आए देहाती मरीज़ सुस्ता रहे हैं
बेकार पड़े घोड़े भी निश्चिन्त, पसरे हैं
लेकिन घोड़े वाले परेशान, दाढ़ी खुजला रहे हैं
ग्राहक की प्रतीक्षा में उन की आँखे सूख गई हैं
एकदम सुर्ख और खाली
एक लकीर भर डोल रही है उनमें
यह लकीर घोड़े और घोड़े वाले में फर्क बताती है
तापमान कुछ और बढ़ गया है

'''+50c'''
उस बड़े बन्दर को दो युवक
(एक चंट / दूसरा साधारण ढीला ढाला सा)
चॅाकलेट खिला रहे हैं
वह बन्दर उनके साथ गुस्ताखी नहीं करता
वे लोग बातें कर रहे हैं खुसर फुसर
युवक ‘पंजाबी’ में
बंदर ‘बंदारी’ में
क्या फर्क पड़ता है
‘देास्ती’ की एक ही भाषा होती है
उनकी आपस में पट रही है / जोड़ तोड़ चल रहा है
तापमान तेज़ी से बढ़ रहा है

+60c हिजड़े और बहरूपिए मचक-मचक कर चल रहे हैं
उन के ढोली गले में रूमाल बांधे
अदब से, झुक कर उन के पीछे जा रहे हैं
पान चबाते होंठों में लम्बी-लम्बी विदेशी सिग्रेटें दबाए
गाढ़े मेकअप व मंहगे इत्र से सराबोर
इन भांडों से बेहतर ज़िन्दगी और किसकी है ?
लंगड़ी बदसूरत भिखारिन भीख न देने वालों को गालियाँ देती है
उसके अनेक पेट हैं
और हर पेट में एक भूखा बच्चा
संभ्रांत सा दिखने वाला एक अधेड़
काला लबादा ओढ़, तेल की कटोरी हाथ में लिए
फ्रेंडशिप बैंड वाली तिब्बती लड़की के बगल में बैठ गया है
उस की बूढ़ी माँ को फेफड़ों का केंसर है

गेयटी के सामने से एक महिला गुज़र गई है
उसके सफेद हो रहे बाल मर्दाना ढंग से कटे हैं
कानों में बड़ी-बड़ी बालियाँ और गले में खूब चमकदार मनके
उसकी नज़रें एक निश्चित ऊँचाई पर स्थिर हैं
उसकी बिंदास चाल में
समूचे परिदृष्य को यथावत् छोड कहीं पहुँच जाने की आतुरता है
तापमान काफी बढ़ गया है

+70c हनीमून जोड़े फोटो खिंचवाते हैं
कभी-कभी किसी-किसी का कैमरा
क्लिक नहीं करता
चाहे कितना भी उलट पलट कर देखो
कभी-कभी कुछ जोड़े
बिल्कुल क्लिक नहीं करते
फिर भी वे साथ-साथ चलते हैं
लिफ्ट में, बारिश्ता, बालजीज़ में
जाखू से उतरते हैं एक दूसरे से चिमट कर
स्केंडल पर गलबहियाँ डाले
और रिज पर एक ही घोड़े पर
ठुम्मक-ठुम्मक
घोडे़ की छिली पीठ की परवाह किए बिना ...........
तापमान एकदम बढ़ गया है ।

+80c गुस्ताख़ बंदर रेलिंग पर से गायब है
लड़कियों के पास पंजाबी युवक पहुंच गए हैं
चंट युवक सुंदर वाली से सटकर बैठ गया है
उसे यहां वहां छू रहा है
लड़की शर्म से पिघल रही है
आँखें नीची किए हंसती जा रही है
उसके ओठ सिमट नहीं पा रहे हैं
दंत पंक्तियाँ छिपाए नहीं छिप रही हैं

साँवली लड़की कभी कलाई की घड़ी देखती है
कभी चर्च की टूटी हुई घड़ी की सूईयों को
जो लटक कर साढ़े छह बजा रही हैं
साधारण युवक की आँखें मशोबरा के पार
कोहरे में छिप गई सफेद चोटियों में कुछ तलाश रहीं हैं
वह बेचैन है मानो अभी कविता सुना देगा
तापमान बेहद बढ़ चुका है

'''+90c'''
कुछ पुलिस वाले
नियम तोड़ रहे एक घोड़े वाले को
बैंतों से ताड़-ताड़ पीटने लगे हैं
घोड़े वाले की पीठ पर लाल-नीले निशान पड़ गए हैं
गुस्सा पीए हुए उसके साथी उसे पिटते हुए देखते रह गए हैं
पुलिस वाले उसे घसीटते हुए ले जा रहे हैं
वह ज़िबह किए जा रहे सूअर की तरह गों-गों चिल्ला रहा है
गाँधी जी की सुनहरी पीठ शान्तिपूर्वक चमक रही है
इन्दिरा धूप और गुस्सा खा कर कलिया गई हैं
परमार चिनार के पत्तों में छिपे झेंप रहे हैं
तापमान भीतर से बढ़ने लगा है

'''+100c'''
मेरे बगल में स्टेट लाइब्रेरी खामोश खडी है
साफ सुथरी, मेरी सफेद कॉलर जैसी
मेरी मनपसंद जगह !
वहां भीतर ठंडक होगी क्या ?
तापमान बर्दाश्त से बाहर हो गया है

11.05.2002
</poem>
97
edits