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शिमला का तापमान / अजेय

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=अजेय|संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poem>( सामान्य से दस डिग्री उपरऊपर)
'''+10<sup></sup>c'''
स्पष्ट होते हैं
बिखर कर बदल जाते हैं
कभी नीली जीन्स की नदी -सी एक दूर नगर निगम के दफ्तर दफ़्तर तक चली जाती है
पतली और पतली होती
जल -पक्षियों से, डूबते, उतराते हैं उस पर रंग बिरंगी टी-शर्ट्स और टोपियांटोपियाँ
धूप सीधी सर पर है एकदम कड़़क
और तापमान बढ़ा हुआ
मेरे पास आकर रोता है -
‘अंकल ले लो न, कोई भी नहीं ले रहा’’
उसकी आंखें आँखें प्रोफेशनल हैं फिर भी भीतर कुछ काँप -सा जाता है
तापमान पहले से बढ़ गया है
'''+30c'''
प्लास्टिक का हेलीकॅाप्टर
रह -रह कर मेरे पास तक उड़ा चला आता है लौट कर लड़खड़ाता लेन्ड लैन्ड करता है रेलिंग पर बैठा बड़ा -सा बन्दर दो लड़कियों की चुन्नी पकड़ता, मुंह मुँह बनाता, डराता है
लड़कियाँ
एक सुन्दर, गोरी, लाल-लाल गालों वाली
दूसरी साधारण, सांवली साँवली
प्रतिवाद नहीं करतीं
शर्म से केवल मुह छिपातीं, मुस्करातीं हैं
'''+40c'''
इक्के -दुक्के घोड़े वाले ठक-ठक किनारे -किनारे दौड़ रहे हैं
घोड़े वालों की चप्पलों की चट-चट
घोड़े की टापों में घुल मिल रही है
दोनों की चुंधियाई आँखों में आँसू हैं
गाढ़े सनग्लास पहने सैलानी स्वर्ग में उड़ रहा है
बड़े से छतनार दरख्त दरख़्त के नीचे आई जी एम सी आई० जी० एम० सी० में इलाज करवाने आए देहाती मरीज़ सुस्ता रहे हैं
बेकार पड़े घोड़े भी निश्चिन्त, पसरे हैं
लेकिन घोड़े वाले परेशान, दाढ़ी खुजला रहे हैं
'''+50c'''
उस बड़े बन्दर को दो युवक
(एक चंट / दूसरा साधारण ढीला -ढाला -सा)
चॅाकलेट खिला रहे हैं
वह बन्दर उनके साथ गुस्ताखी नहीं करता
वे लोग बातें कर रहे हैं खुसर -फुसर
युवक ‘पंजाबी’ में
बंदर ‘बंदारी’ में
क्या फर्क पड़ता है
‘देास्ती’ ‘दोस्ती’ की एक ही भाषा होती है उनकी आपस में पट रही है / जोड़ -तोड़ चल रहा है
तापमान तेज़ी से बढ़ रहा है
+60c हिजड़े और बहरूपिए मचक-मचक कर चल रहे हैं उन के ढोली गले में रूमाल बांधे बाँधे
अदब से, झुक कर उन के पीछे जा रहे हैं
पान चबाते होंठों में लम्बी-लम्बी विदेशी सिग्रेटें दबाए
उसके अनेक पेट हैं
और हर पेट में एक भूखा बच्चा
संभ्रांत -सा दिखने वाला एक अधेड़
काला लबादा ओढ़, तेल की कटोरी हाथ में लिए
फ्रेंडशिप बैंड वाली तिब्बती लड़की के बगल में बैठ गया है
गेयटी के सामने से एक महिला गुज़र गई है
उसके सफेद सफ़ेद हो रहे बाल मर्दाना ढंग से कटे हैं
कानों में बड़ी-बड़ी बालियाँ और गले में खूब चमकदार मनके
उसकी नज़रें एक निश्चित ऊँचाई पर स्थिर हैं
तापमान काफी बढ़ गया है
+70c हनीमून जोड़े फोटो खिंचवाते हैं
कभी-कभी किसी-किसी का कैमरा
क्लिक नहीं करता
चाहे कितना भी उलट -पलट कर देखो
कभी-कभी कुछ जोड़े
बिल्कुल क्लिक नहीं करते
तापमान एकदम बढ़ गया है ।
+80c गुस्ताख़ बंदर रेलिंग पर से गायब है लड़कियों के पास पंजाबी युवक पहुंच पहुँच गए हैं
चंट युवक सुंदर वाली से सटकर बैठ गया है
उसे यहां वहां यहाँ-वहाँ छू रहा है
लड़की शर्म से पिघल रही है
आँखें नीची किए हंसती हँसती जा रही है
उसके ओठ सिमट नहीं पा रहे हैं
दंत -पंक्तियाँ छिपाए नहीं छिप रही हैं
साँवली लड़की कभी कलाई की घड़ी देखती है
जो लटक कर साढ़े छह बजा रही हैं
साधारण युवक की आँखें मशोबरा के पार
कोहरे में छिप गई सफेद सफ़ेद चोटियों में कुछ तलाश रहीं हैं
वह बेचैन है मानो अभी कविता सुना देगा
तापमान बेहद बढ़ चुका है
'''+90c'''
 
कुछ पुलिस वाले
नियम तोड़ रहे एक घोड़े वाले को
'''+100c'''
 मेरे बगल में स्टेट लाइब्रेरी खामोश ख़ामोश खडी है साफ -सुथरी, मेरी सफेद सफ़ेद कॉलर जैसी
मेरी मनपसंद जगह !
वहां वहाँ भीतर ठंडक होगी क्या ?
तापमान बर्दाश्त से बाहर हो गया है
11.05.2002
</poem>
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