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16:28, 20 जनवरी 2012 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=काज़िम जरवली
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<poem>छीनने वालों दूसरो की हसी,
तुम कभी मुस्कुरा नहीं सकते।
कातिलों नन्हे जुगनुओ का लहू,
रौशनी है बुझा नहीं सकते ।। -- काज़िम जरवली
</poem>