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ग़म / शिवदीन राम जोशी

2 bytes added, 01:59, 21 जनवरी 2012
कोउ पूछे कहाँ, हमसे बतियां,
हममे गम हैं, हम गम में समाये।
गम खा के रहे, गम खा के जिये,
गम गीत सदा, गम के हम गाये।
गम देख खिले, अहा खूब मिले,
गम ताजा है राजा न बासी बुरा,
गम खाय के देखलो मानव जानो।
गम खा प्रहलाद मरा न जरा,
घ्रुव खा के गया गम वो पहिचानो।
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