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उर में हरि हेरे बिना, मिले कहां बावरे।
लगाके लंगोटी बना, वारे वा रोटी दास,
दुनियो दुनियां की न आस तजी, झूठा तप ताव रे।पेट भरण भरण हेत करता जरगरण जागरण मूढ़,
ज्ञान ध्यान भक्ति बिन कहां हर्ष चाव रे।
कहता शिवदीनराम राम-राम राम रिझा,
त्यागो अभिमान मान संत शरण आवरे।
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