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रुख से ज़ुल्फ़ें जब महे-कामिल में सरकाते हैं वो
तीरगी सदियों की पल में दूर कर जाते हैं वो
जब भी मिलता एक झलक के वास्ते बेचैन रहता हूँ मैं उनसे लब मेरे खुलते नहींसदा अपने दिल की बात हंसकर मुझसे कह जाते देखकर हालत मेरी चुपके से मुस्काते हैं वो
मुस्कुरा कर बख्श वह बढ़ा देते हैं मुझे बेचैनियाँबेचैनी मेरी उनसे पूछो किसलिए दिल मेरा को मेरे किसलिए हर रोज़ तड़पाते हैं वो
क्या कहा जाए बदन उनका है एक नागिन की तरहलहराता है उनका बदन जब भी आ के बाहों में मेरी आते हैं कुछ ऐसे बल खाते हैं वो
बेख़ुदी की इन्तिहाँ कहते हैं इसको दोस्तोंपी के सो जाता में उनकी जानिब जब कभी खिंचता हूँ मैं बेरुख़ी के जाम को आँखों से छलकाते हैं वो
सुनने वाले गीत वह तरन्नुम है कि सुनकर झूम उठते हैं सभीगीत मेरा जब किसी भी महफ़िल में भी मेरे इस गीत को गाते हैं वो
दर हक़ीक़त जो भी हाज़िर है हबीब अमने जीते जी ख्वाहिश न पूरी अपनी कर पाया 'रक़ीब'अश्क़ ही पीते हैं अपने और ग़म खाते ख्वाहिशे-दिल ख़्वाब में भी पूरी कर जाते हैं वो
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