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15:48, 31 जनवरी 2012 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=नीरज गोस्वामी
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<poem>
जब शुरू में रफ़्ता- रफ़्ता बोलता है
मुँह से बच्चे के फ़रिश्ता बोलता है
जो भी सिखला दे उसे मालिक, वही सब
कैद में मजबूर तोता बोलता है
सैर को जब आप जाते हैं चमन में
तब सुना है पत्ता पत्ता बोलता है
हूं भले मैं पुरख़तर पर पुरसुकूं हूं
बात ये नेकी का रस्ता बोलता है
पुरख़तर : खतरों भरा
आंकड़ों से लाख हमको बरगलाएं
पर हकीकत हाल खस्ता बोलता है
भूल मत जाना कभी माज़ी की भूलें
वक्त ये सबका गुजिश्ता बोलता है
आइना बन कर दिखाएँ आप ‘नीरज’
सच जो होकर भी शिकस्ता, बोलता है
</poem>