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स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से / गोपालदास "नीरज"
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12:37, 1 फ़रवरी 2012
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|रचनाकार=गोपालदास "नीरज"
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<poem>
स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।
<poem>
Dr. ashok shukla
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