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{{KKRachna
|रचनाकार=गोपालदास "नीरज"
|संग्रह=कारवां गुजर गया / गोपालदास "नीरज"}}{{KKCatKavita‎}}<poem>
अजनबी यह देश, अनजानी यहां की हर डगर है,<br>
मैं तुम्हीं से, बस तुम्हीं से लौ लगाना चाहता हूं।<br>
मैं तुम्हें, केवल तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं॥
 
</poem>
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