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|रचनाकार=अशोक तिवारी
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'''जलियावाला बाग़-2'''
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वक़्त कटता नहीं है जिनसे काटे से
रिश्ते निभते नहीं हैं निभाने से
जलियावाला बाग़
तब्दील होता जा रहा है जलियावाला पार्क में
आधुनिकता के गर्त में समा रही है
संघर्ष के लिए तैयार
बाज़ार को जलियावाला
और जलियावाला को बाज़ार!
3014/1007/2011
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