1,697 bytes added,
13:15, 2 फ़रवरी 2012 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नीरज गोस्वामी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
बोल कर सच ही जियेंगे जो कहा करते हैं
साथ लेकर वो सलीबों को चला करते हैं
आ पलट देते हैं हम मिल के सियासत जिसमें
हुक्मरां अपनी रिआया से दगा करते हैं
साथ जाता ही नहीं कुछ भी पता है फिर क्यूँ
और मिल जाये हमें रब से दुआ करते हैं
धूप दहलीज़ से कमरों में उन्हीं के पहुँची
खोल दरवाज़े घरों के जो रखा करते हैं
फूल हाथों में, तबुस्सम को खिला होंटों पर
तल्खिया सबसे छुपाया यूँ सदा करते हैं
दोष आंधी को भले तुमने दिये हैं लेकिन
ज़र्द पत्ते तो सदा खुद ही गिरा करते हैं
इक गुजारिश है कि तुम इनको संभाले रखना
दिल के रिश्ते हैं ये मुश्किल से बना करते हैं
चाह मंजिल की मुझे क्यूँ हो बताओ "नीरज"
हमसफ़र बन के मेरे जब वो चला करते हैं
</poem>